डॉक्टर से बड़ा उनका ड्राइवर
के डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ भी परेशान है। सुपरिटेंडेंट का ड्राइवर होने की वजह से नाहर सिंह को कोई टोकने तक की हिम्मत नहीं करता है। एक स्टाफने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, पिछले कुछ समय से
इमरजेंसी में भी आकर वहां भर्ती या दिखाने आए मरीजों को इंजेक्शन- दवाइयां देता है। इस मामले में स्टाफ की उसे टोकने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि वह अधीक्षक का ड्राइवर है। प्राइवेट हॉस्पिटल में शिफ्ट करने की काउंसिलिंग करता है: स्टाफके लोगों ने बताया कि अनजान
मरीज ड्राइवर की बातों में आकर उसकी बताई दवाइयां बाजार से लेकर उपयोग में ले लेते हैं, जिससे उनकी जान का भी खतरा है। ड्राइवर कई भर्ती मरीजों (जो दूसरे राज्य के
ड्राइवर वार्ड में आता है और राउंड होते हैं) से बातचीत के दौरान उनको लगाता है।
इस दौरान वह कुछ मरीजों से बातचीत करता है, उनको इंजेक्शन लगाने के साथ ड्रिप बदलने का भी काम करता है। इसी तरह वह
निजी हॉस्पिटल में रेफर होने के लिए काउंसिलिंग करता है। वह कई बार यहां से मरीजों को सरकारी एंबुलेंस से प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती करवा चुका है।