मेडिकल कॉलेज ने देहदानी का शव लौटाया पूर्व में हुई कैंसर बीमारी बताया कारण जननायक संवाददाता

नवंबर 28, 2024 - 16:54
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मेडिकल कॉलेज ने देहदानी का शव लौटाया पूर्व में हुई कैंसर बीमारी बताया कारण जननायक संवाददाता


मेडिकल कॉलेज ने देहदानी का शव लौटाया
पूर्व में हुई कैंसर बीमारी
बताया कारण जननायक संवाददाता
चित्तौड़गढ़। शहर के गांधीनगर क्षेत्र में निवासरत एक देहदानी बुजुर्ग
की मृत्यु पर उनकी पुत्रियों ने लायंस
क्लब के सहयोग से गाजे बाजे के साथ शव यात्रा निकाल कर मेडिकल कॉलेज को सौंपने की तैयारी पूरी कर ली, लेकिन अंतिम समय में बुजुर्ग के कैंसर पीड़ित होने की बात सामने आने पर देहदान की प्रक्रिया रोक दी गई। मेडिकल कॉलेज ने शव पुनः परिजनों के सुपुर्द कर दिया, जिनका बुधवार प्रातः अंतिम संस्कार कर दिया गया।
जानकारी के अनुसार गांधीनगर
क्षेत्र के मुख्यमंत्री जन आवास के


निवासी 72 वर्षीय नन्दलाल वैष्णव का मंगलवार को निधन हो गया, उन्होंने अपने जीते-जी देह दान की घोषणा कर पंजीयन भी करवा रखा था । देहदानी की मृत्यु के बाद उनकी पुत्रियों ने लायंस क्लब को देहदान की सूचना देने पर क्लब के पदाधिकारी मौके पर पहुंचे और बुजुर्ग के शव को मेडिकल कॉलेज पहुंचाने की तैयारी की। इस दौरान मेडिकल कॉलेज
प्रबंधन ने आवश्यक स्टाफ की कमी बता शव को अन्यत्र भेजने की कह कर पल्ला झाड़ लिया। इसकी जानकारी जिला कलक्टर व विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या को देने के बाद उनके हस्तक्षेप पर मेडिकल कॉलेज शव लेने को तैयार हुआ । मेडिकल कॉलेज द्वारा शव
लेने के लिए हां करने पर नगर
पालिका के मोक्ष रथ से शव को दोनों बेटियों ने मेडिकल कॉलेज पहुंचा कर प्रबंधन के सुपूर्द करने पर शव को डीप फ्रिज में रखवा दिया। इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा मृतक की पूर्व में हुई बीमारियों की जानकारी लेने पर उनकी पुत्री मीनाक्षी ने बताया कि उनके पिता को 2018 में कैंसर हुआ था, जिसका कीमो थेरैपी से उपचार कराया, जिससे वह पूर्ण रुप से
स्वस्थ हो गए थे। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा कैंसर की बीमारी होने से मेडिकल प्रोटोकॉल के कारण शव लेने में असमर्थता जताने के बाद गुरुवार को शव को गांधीनगर मोक्षधाम में लाकर रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
दोनो पुत्रियों ने दी पिता को मुखाग्नि
देहदान करने वाले नन्दलाल वैष्णव मूल रुप से भूपालसागर निवासी थे। उनके मात्र दो पुत्रियां हैं, कोई पुत्र नहीं है। उनकी बीमारी के दौरान दोनो पुत्रियों ने अपना फर्ज निभाते हुए पिता की सेवा की, उनकी मृत्यु के बाद पुत्र नहीं होने पर दोनो पुत्रियों ने पुत्र का भी फर्ज निभाते हुए अर्थी को कंधा देकर श्मशान तक पहुंचाया और उन्हे मुखाग्नि भी दी।

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