वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की याचिका

अप्रैल 15, 2025 - 18:13
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वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की याचिका

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की याचिका

स्थान: नई दिल्ली
घटना: वक्फ (संशोधन) कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

मुख्य बिंदु:

  1. याचिका दायर करने वाले:

    • जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के वरिष्ठ पदाधिकारियों—प्रो. सलीम इंजीनियर, मौलाना शफी मदनी और इनाम-उर-रहमान—द्वारा याचिका दाखिल की गई।

    • मामला: मोहम्मद सलीम एवं अन्य बनाम भारत संघ

  2. याचिका में आपत्तियाँ:

    • वक्फ संशोधन कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26 और 300(A) का उल्लंघन बताया गया है।

    • आरोप है कि नया कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है और वक्फ की धार्मिक, चैरिटेबल और सामुदायिक प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है।

  3. जमाअत का तर्क:

    • वक्फ इस्लामी आस्था और भारतीय विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    • यह शिक्षा, सामाजिक सेवा और धर्म से जुड़ा है, इसलिए इसमें कोई हस्तक्षेप नैतिक और संवैधानिक रूप से अनुचित है।

  4. मांग:

    • जमाअत ने वक्फ संशोधन कानून को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने की सुप्रीम कोर्ट से मांग की है।

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने वक्फ कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया
नई दिल्ली। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की जिसमें वक्फ (संशोधन) कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
माअत के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर, मौलाना शफी मदनी और इनाम-उर-रहमान तथा जमाअत के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा दायर याचिका मोहम्मद सलीम एवं अन्य (याचिकाकर्ता) बनाम भारत संघ (प्रतिवादी) में नए कानून पर गंभीर चिंता जताई गई है। याचिका में कहा यह संशोधन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और देश में वक्फ के धार्मिक, चैरिटेबल व समुदाय उन्मुख चरित्र को खंडित करते हैं। याचिका में वक्फ संशोधन विधेयक को भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26 व 300 (ए) का उल्लंघन बताते हुए संशोधनों को असंवैधानिक करार देकर रद्द करने की मांग की गई है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि वक्फ इस्लामी आस्था व भारतीय विरासत का एक अभिन्न अंग है जो दान, शिक्षा, सामाजिक कल्याण से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसके धार्मिक व सामुदायिक चरित्र को कमजोर करने का कोई भी प्रयास न केवल असंवैधानिक है, बल्कि नैतिक रूप से भी अन्यायपूर्ण है।

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