लगातार तीसरे साल भारतीय सेना में भर्ती के लिए नहीं आए गोरखा
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लगातार तीसरे साल भारतीय सेना में भर्ती के लिए नहीं आए गोरखा
नई दिल्ली। ये लगातार तीसरा साल है जबकि नेपाल से भारतीय सेना में शामिल होने के लिए एक भी गोरखा सैनिक नहीं आए। दरअसल ये कदम नेपाल सरकार ने ही उठाया है। उसने कूटनीतिक तनाव के चलते नेपाल ने अपने यहां गोरखाओं को भारतीय सेना में भर्ती के लिए भेजना बंद कर दिया है। दरअसल नेपाल सरकार अग्निपथ भर्ती योजना से नाराज है।वह इसमें बदलाव चाहती है। भारत और नेपाल के बीच सेना में भर्ती को लेकर क्या समझौता है । भारत में आना रुकने के बाद अब गोरखा सैनिक कहां जा रहे हैं। लेकिन ये भी तय है कि भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में इसका खासा असर पड़ रहा है, वहां सैनिकों की कमी पड़ने लगी है।
भारतीय थल सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी अगले हफ्ते नेपाल के दौरे पर जा रहे हैं। माना जा रहा है कि इस दौरे में सबसे बड़ा मुद्दा ये भी होगा कि नेपाल के गोरखाओं का भारतीय सेना
में आना शुरू हो इसके लिए कोई रास्ता निकाला जाए। जून 2022 में इस योजना की शुरुआत के बाद से नेपाल से कोई भी नया भर्ती नहीं किया गया है। इसका असर साफतौर पर गोरखा रेजिमेंट पर पड़ रहा है, जिसे भारतीय सेना की शान माना जाता है । वीरता में जिस रेजिमेंट की तमाम कहानियां हैं।
अग्निपथ योजना से नाराज दरअसल नेपाली सरकार ने 1947 के त्रिपक्षीय समझौते किया था। ये त्रिपक्षीय समझौता भारत, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच एक महत्वपूर्ण संधि है जो नेपाल के गोरखा सैनिकों की भारत
और ब्रिटेन में सैन्य सेवा से संबंधित है। इसमें ये सुनिश्चित किया गया था कि भारत की आजादी के बाद भी नेपाली गोरखा सैनिक भारत और ब्रिटेन की सेना में अबाध तरीके से भर्ती होते रहें । नेपाल का कहना है कि अग्निवीर योजना 1947 के त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन करता है जो विदेशी सेनाओं में सेवारत नेपाली सैनिकों के लिए समान व्यवहार और शर्तें सुनिश्चित करता है, जिसमें पेंशन और नौकरी की सुरक्षा शामिल है।
19वीं शताब्दी की शुरुआत से ही गोरखाओं को अंग्रेजों द्वारा भर्ती किया जाता रहा है। खासकर एंग्लो- नेपाली युद्ध के बाद जिसके कारण
उन्हें विभिन्न सैन्य बलों में शामिल किया गया । नेपाल से नए रंगरूटों को भर्ती के लिए नहीं भेजने से भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंटों के भीतर मैनफोर्स यानि सैनिकों की कमी ला दी है। 2021 से करीब 12,000 गोरखा सैनिक रिटायर हो चुके हैं,
नेपाल से आए गोरखाओं की सालाना 1,500 से 1,800 भर्तियां भारतीय सेना में होती थी । अनुमान बताते हैं कि अगर भर्ती रुक गई तो सात वर्षों में, गोरखा बटालियनों की ताकत आधी हो जाएगी और 2037 तक भारतीय सेना में शुद्ध गोरखा बटालियन ही खत्म हो जाएगी। ब्रिटिश सेना में हर साल 300 गोरखा सैनिकों की भर्ती होती है। नेपाली सरकार चिंतित है कि अग्निपथ अनुबंधों की अल्पकालिक प्रकृति के कारण उसके यहां प्रशिक्षित सैनिकों की अधिकता हो सकती है, जो अपनी सेवा समाप्त होने के बाद बेरोजगार हो सकते हैं, जिससे विद्रोही समूहों या विदेशी भाड़े के सैनिकों द्वारा भर्ती किए जाने पर सुरक्षा जोखिम पैदा हो सकता है।
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