अविश्वास प्रस्ताव के लिए राज्यसभा के सभापति जिम्मेदार
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अविश्वास प्रस्ताव के लिए राज्यसभा के सभापति जिम्मेदार
राज्यसभा के सभापति के खिलाफ आईएनडीआईए गठबंधन के अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष एवं सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सभापति ने देश की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि हमें अविश्वास प्रस्ताव के लिए यह नोटिस लाना पड़ा। हमारी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या राजनीतिक लड़ाई नहीं है। हम देशवासियों को बताना चाहते हैं कि हमने लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सोच-समझकर यह कदम उठाया। कांस्टीट्यूशन क्लब में आज यहां आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस में खरगे ने कहा उपराष्ट्रपति का पद दूसरे नंबर का सबसे उच्च संवैधानिक पद है। इस पद पर महाविद्वान डा. सर्वपल्ली
राधाकृष्णन, डा. शंकर दयाल शर्मा, जस्टिस हिदायत उल्ला और केआर नारायणन समेत कई महान लोग रह चुके हैं। 1952 से अब तक किसी उपराष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के आर्टिकल 67 के तहत इस तरह का अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया, क्योंकि वो हमेशा निष्पक्ष व राजनीति से परे रहे। केवल सदन चलाना और वो भी
जो सदन के नियम कानून हैं, उसके तहत सदन चलाते रहे। आज हमें कहना पड़ता है सदन में रूल्स को छोड़कर राजनीति ज्यादा हो रही है। उन्होंने कहा कि पहले उपराष्ट्रपति व पूर्व सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
ने 16 मई 1952 को सांसदों से कहा था कि मैं किसी पार्टी से नहीं हूं। इसका मतलब है मैं सदन में हर पार्टी से जुड़ा हूं।
खरगे ने कहा कि हमें अफसोस है संविधान लागू होने के 75वें साल में उपराष्ट्रपति के खिलाफ विपक्ष को यह अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मजबूर किया है। पिछले तीन वर्षों में उनका (
उपराष्ट्रपति का) आचरण पद की गरिमा के विपरीत रहा है। उन्होंने सभापति पर विपक्षी सदस्यों के साथ पक्षपातपूर्ण बर्ताव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सदन में कई प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर व पत्रकार
आदि इस सदन में आए हैं, जिनका 40-50 साल का राजनीतिक अनुभव रहा है। सभापति उनको हेडमास्टर की तरह लेक्चर सुनाते हैं। खरगे ने आरोप लगाया कि सदन में विपक्ष की ओर से नियमानुसार जो विषय उठाए जाते हैं, सभापति उन पर वह नियोजित तरीके से स्वस्थ संवाद नहीं होने देते हैं। सदन अगर बाधित होता है तो उसका सबके बड़ा कारण सभापति हैं। दूसरों को वह सबक सिखाते हैं लेकिन बार -बार बाधा पहुंचाकर हाउस को बंद करने की कोशिश करते हैं। सामान्य तौर पर विपक्ष आसन से संरक्षण मांगता है लेकिन सदन में इसे अनसुना कर दिया
जाता है। सभापति के आचरण ने देश के संसदीय इतिहास में ऐसा वक्त ला दिया कि हमें यह नोटिस देना पड़ा है। देश के नागरिकों को हम विनम्रता से बताना चाहते हैं कि लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है। नहीं चली राज्यसभा
राज्यसभा में बुधवार को सभापति धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर पक्ष- विपक्ष के बीच एक बार फिर आज तकरार हुई और कार्यवाही हंगामे के भेट चढ़ गई। सदन में सुबह 11 बजे कार्यवाही शुरू होने के कुछ देर बाद ही सभापति के खिलाफ अविश्वास के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के बीच नोक -झोंक शुरू हो गयी, जिससे पहले सदन की कार्यवाही 12 बजे, बाद में दिनभर के लिए स्थगित कर दी ।
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