कम बच्चे पैदा कर रहे भारतीय

नवंबर 13, 2024 - 17:46
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कम बच्चे पैदा कर रहे भारतीय


कम बच्चे पैदा कर रहे भारतीय
तरह, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और चीन को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर आ गया है। लेकिन, एक स्टडी के मुताबिक भारत की आबादी बढ़ने की दर लगातार घटती जा रही है। आजादी के बाद 1950 में भारत में प्रजनन दर (प्रति महिला जन्म दर ) 6.2 थी, जो 2021 में घटकर 2 फीसदी से भी ■ कम पर पहुंच गई है। दावा किया गया है कि भारत में प्रजनन दर घटने का ये दौर लगातार जारी रहेगा। अगर ऐसा होना जारी रहा तो 2050 तक भारत में प्रजनन दर 1.3 रह जाएगी। साल 2054 में भारत की आबादी 1.69 अब तक पहुंच सकती है। लेकिन
उसके बाद घटने का सिलसिला जारी होगा और साल 2100 में भारत की आबादी घटकर 1.5 अरब रह जाएगी। प्रजनन दर में इस गिरावट के देश के तौर पर फायदे ही नहीं, नुकसान भी हैं।
यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक वैश्विक प्रजनन दर घटकर 1.8 पहुंच जाएगी। वहीं, 2100 तक वैश्विक प्रजनन दर 1.6 रह जाएगी। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 1950 में 1.6 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे। वहीं, 2021 में 2.2 करोड़ बच्चों ने भारत में जन्म लिया । अनुमान लगाया गया है कि घटती प्रजनन दर के कारण 2050 में भारत में 1.3 करोड़ बच्चे ही पैदा
होंगे। 2021 में दुनियाभर में 12.9 प्रजनन से जुड़ी चुनौतियों भारत में क्यों घट रही
करोड़ बच्चे पैदा हुए। यह आंकड़ा 1950 में दुनियाभर में जन्म वाले 9.3 करोड़ बच्चों के मुकाबले ज्यादा हैं। वहीं, 2016 में जन्म लेने वाले 14.2 करोड़ बच्चों से कम है। कम आय वाले देशों में उच्च प्रजनन दर
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज यानी जीबीडी 2021 फर्टिलिटी एंड फोरकास्टिंग कोलैबोरेटर्स के मुताबिक, 21वीं सदी में कई कम आय वाले देशों को उच्च प्रजनन दर का सामना भी करना पड़ेगा। लेकिन, ज्यादातर बच्चे दुनिया के सबसे गरीब क्षेत्रों में पैदा होंगे। अनुमान लगाया गया है कि 2100 तक दुनियाभर में जीवित जन्मों में कम आय वाले देशों की हिस्सेदारी 18 फीसदी से दोगुनी होकर 35 फीसदी पहुंच जाएगी। इससे जब तक सरकारें बढ़ती आबादी की चुनौतियों का हल निकालने की दिशा में काम नहीं करेगी, तब तक बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ता रहेगा ।
से
जूझ रही दुनिया
डॉक्टर्स के मुताबिक, पूरी दुनिया में प्रजनन से जुड़ी कई चुनौतियां सामने आ रही हैं। अगर इनमें सुधार नहीं किया गया तो जोखिम बढ़ सकता है। फिलहाल जलवायु परिवर्तन और खान-पान में बदलाव के कारण सबसे ज्यादा चुनौतियां पेश आ रही हैं। इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन ने एक स्टडी में पाया कि गर्भावस्था बड़ी चुनौती बनती जा रही है। साथ ही नकारात्मक हालातों के कारण बाल मृत्यु दर का भी जोखिम बढ़ सकता है।
घट रही है युवा आबादी
प्रजनन दर
भारत के लिए प्रजनन दर घटने के बड़े मायने हैं। इससे दुनियाभर के देशों के सामने कई चुनौतियां पेश आएंगी। लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण सामाजिक असंतुलन भी पैदा हो सकता है। हालांकि, भारत के लिए ये चुनौतियां कुछ दशक दूर हैं। प्रजनन दर घटने का बड़ा कारण पहले के मुकाबले अब देर से हो रही शादियां भी हैं। वहीं, देरी से शादी के कारण बच्चों की प्लानिंग में भी देरी प्रजनन दर में गिरावट का कारण बन रही है। वहीं, अब दंपति पहले के मुकाबले कम बच्चे पैदा कर रहे हैं।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शून्य से 14 साल वालों की आबादी में तेज गिरावट आ रही है। 1991 में इनकी जनसंख्या 31.2 करोड़ थी, जो 2001 में 36.4 करोड़, 2011 में 37.4 करोड़ हो गई। हालांकि, 2024 में यह घटकर 34 करोड़ हो गई है। 60 वर्ष से ज्यादा की आबादी की
संख्या 24 साल में दोगुनी हो गई है। 1991 में इनकी संख्या 6.1 करोड़, 2001 में 7.9 करोड़, 2011 में 10.2 करोड़ और 2024 में यह 15 करोड़ हो गई है।

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